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मेरा ज़मीर, मेरा सब कुछ है / डी .एम. मिश्र
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मेरा ज़मीर, मेरा सब कुछ है
ये हक़ीक़त है खुदा सब कुछ है
सब्र का फल बड़ा मीठा होता
मेरा नुक़सान –नफ़ा सब कुछ है
मेरी जो भूख - प्यास हर लेती
वो मेरी रामकथा सब कुछ है
चलो दरिया में लगायें गोते
यही दो पल का मज़ा सब कुछ है
कभी होगा हिसाब कर्मो का
बही खाते में जमा सब कुछ है
इस भरोसे पे आज भी क़ायम
हम ग़रीबों की अना सब कुछ है
मैं किसी भी मुक़ाम पर पहुंचूं
मेरी अम्मा की दुआ सब कुछ है