मेरा जीवन लघु अंकुर है।
रवि शशि की किरणों के भीतर
किसका यह नव उज्ज्वल उर है?
मुझ पर पृथ्वी सदृश ओसकण
रखा हुआ है क्यों साकर्षण?
किसका है यह प्रणयपूर्ण प्रण?
बन्धन हो, पर केवल दो क्षण!!
तो फिर इस सीमित जीवन का
दुख भी तो कैसा सुमुधुर है!
मेरा जीवन लघु अंकुर है।