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मेरा जीवन / शारदा सिंह

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मेरा जीवन अनंत संघर्ष-गाथा के
विम्बों को समेटते शुरू हुआ था
गुड्डे-गुड्डी की कहानियों से शुरू होकर
यवनी राजकुमार के घोड़े पर सवार होकर आने,
बहुरंगी सपनों के दिव्य आलोक में
चिर बुलंदियों के पाने तक,
तीर्थयात्रियों की थकी हुईं आँखों में
देवमंदिरों के मस्तूलों पर फहरते पताकों की छवि व
गाछों के कोटरे में पक्षी-शावकों के गान
और बाग़ों की हरितिमा में कलरवों से प्राण फूंकने तक
लड़कपन के सुहाने सपनों का एक संसार था मेरा।

लेकिन समय का हिमपात
इन विम्बों को क्षत-विक्षत कर देता है,
अपनों की सांसों की आँधियाँ
इन पेड़ों को उखाड़ डालतीं हैं
परिजनों की जलन
उन दिव्य आलोकों को आग बना
सपनों को जला डालते हैं जो
संघर्ष-गाथा के हसीन पलों में
उग आए थे।

तब जीवनपथ के कठोर
साक्षात्कार से दफ़्न होते सपने
और भस्म होती वर्तमान की राख से
अतीत की प्रतिध्वनि में
भविष्य की आहट की बाट जोहती
उठने की हिम्मत तलाशती हूँ
सामने से गुजरते झुंडों के स्वेदकण की गंध के एहसासात
आशा की किरण जगाते हैं
जैसे तथागत को लकड़हारिनों के गान
"वीणा के तार को इतना मत ऐंठो कि टूट जाए
और ढीला भी न छोड़ो कि बजे नहीं"
ने ज्ञानोदीप्त किया था
हौसलों में अंगड़ाई की हलचल कामनाओं में दिलासा जगाता है
सांत्वना के नये ठौर की तलाश
बुझी आँखों में चमक की लौ जलाती है
और तब मैं निजत्व के संताप को मनुष्यतत्व के सार पर न्योछावर कर
जीवनपथ की नई बुलंदियों को चूमने
विराट साहस के साथ
बढ़ निकलती हूँ।