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मेरा ठिकाना क्या पूछो हो (कविता) / सुरेश सलिल

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मेरा ठिकाना क्या पूछो हो
आब-ओ-दाना क्या पूछो हो

ख़ाली पड़े हैं सारे कमरे
साहिब-ए-ख़ाना क्या पूछो हो

ख़ैर-ख़बर का खेल ज़ुबानी
मिलना-मिलाना क्या पूछो हो

क्या पूछो हो उनका आना
उनका जाना क्या पूछो हो

सलिल अभी तक जाग रहा है
नींद का आना क्या पूछो हो

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आब-ओ-दाना=अन्न-जल; साहिब-ए-ख़ाना= घर का मालिक

(रचनाकाल : 1997-1998)