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मेरा तो जो भी कदम है / मजरूह सुल्तानपुरी
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( मेरा तो जो भी क़दम है
वो तेरी राह में है ) \-२
के तू कहीं भी
के तू कहीं भी रहे
तू मेरी निगाह में है
मेरा तो जो भी क़दम है
वो तेरी राह में है
के तू कहीं भी रहे
तू मेरी निगाह में है
( खरा है दर्द का रीशता
तो फिर जुदाई क्या ) \-२
जुदा तो होते हैं वो
खोट जिनकी चाह में है
मेरा तो जो भी क़दम है
वो तेरी राह में है
के तू कहीं भी रहे
तू मेरी निगाह में है
( छुपा हुआ सा मुझी में
है तू कहीं ऐ दोस्त ) \-२
मेरी हँसी में नहीं है
तो मेरी आह में है
मेरा तो जो भी क़दम है
वो तेरी राह में है
के तू कहीं भी
के तू कहीं भी रहे
तू मेरी निगाह में है
मेरा तो जो भी क़दम है
वो तेरी राह में है
के तू कहीं भी रहे
तू मेरी निगाह में है