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मेरा दिल तोड़ के उसका उछलना भी ज़रूरी था / सूरज राय 'सूरज'

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मेरा दिल तोड़ के उसका उछलना भी ज़रूरी था।
खिलौना था तो बच्चे का बहलना भी ज़रूरी था॥

मैं पत्थर हूँ मेरी फ़ि तरत पिघलना तो नहीं लेकिन
किसी की बात रखने को पिघलना भी ज़रूरी था।
दवाएँ थक गयीं तो आज मुझसे खीझ के बोलीं
सुबह एकाध घण्टे तो टहलना भी ज़रूरी था॥

यक़ीं उसको ये है मुझको यक़ीं उसपे नहीं, लेकिन
यक़ीं चेहरे पर कुछ लम्हों को मलना भी ज़रूरी था॥

भरा था तेल से, कल जो दिया हारा अँधेरे से
उजाले के लिये बाती का जलना भी ज़रूरी था॥

पशेमाँ मैं भी हूँ तुम भी कि नाजायज़ था वह गुस्सा
यक़ीनन उस घड़ी झगड़े का टलना भी ज़रूरी था॥

सफ़र की शर्त थी कि पाँव दोनो काट के दे दूँ
मैं सर के बल चला हूँ क्योंकि चलना भी ज़रूरी था॥

वजह कुछ भी न थी तो क्यूँ वह सन्नाटा था रिश्तों में
अगर कुछ थी तो उसका हल निकलना भी ज़रूरी था॥

अगर पत्थर था वह तो शीशा-ए-दिल क्यों रहा साबुत
अगर था बर्फ़ तो उसका पिघलना भी ज़रूरी था॥

ये डर मेरे पिता को था कि मैं उठ ही नहीं सकता
मगर जब रो पड़ी माँ तो सम्हलना भी ज़रूरी था॥

अगर दिल एक बच्चा है तो वह संज़ीदगी क्यों थी
कभी बच्चे को बच्चे-सा मचलना भी ज़रूरी था॥

जहाँ से टूट के ही आख़िरश वह घर मेरे आया
अहं तेरा अनाथालय में पलना भी ज़रूरी था॥

उगाए वक़्त ने "सूरज" करोड़ों ख़ातिरे-इन्सां
जिन्हें इक दायरे के बाद ढलना भी ज़रूरी था॥