भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा देश / सोहनलाल द्विवेदी
Kavita Kosh से
ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है
नीचे पखार पग तल, नित सिंधु झूमता है,
गंगा पवित्र यमुना, नदियाँ लहर रही हैं
पल-पल नई छटाएँ, पग पग छहर रही हैं।
वह पुण्यभूमि मेरी
वह जन्मभूमि मेरी,
वह स्वर्णभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते, जिसकी पहाड़ियों में
चिड़ियाँ चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में,
अमराइयाँ घनी हैं, कोयल पुकारती है
बहती मलय पवन है, तन मन सँवारती है।
वह धर्मभूमि मेरी
वह कर्मभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी
जन्में जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थीं सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई वंशी पुनीत गीता,
गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया
जग को दया दिखाई, जग को दिया दिखाया।
वह युद्धभूमि मेरी
वह बुद्धभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी!