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मेरा नाम पुकार रहे तुम / जानकीवल्लभ शास्त्री
Kavita Kosh से
मेरा नाम पुकार रहे तुम,
अपना नाम छिपाने को !
सहज-सजा मैं साज तुम्हारा-
दर्द बजा, जब भी झनकारा
पुरस्कार देते हो मुझको,
अपना काम छिपाने का !
मैं जब-जब जिस पथ पर चलता,
दीप तुम्हारा दिखता जलता,
मेरी राह दिखा देते तुम,
अपना धाम छिपाने को !