— तुम कहाँ से हो ?
— सीरिया से ।
— सीरिया के कौन-से शहर से ?
— मैं पैदा हुई दारा में और होम्स में बड़ी हुई,
— मैंने अपनी जवानी बिताई लताकिया में,
— मैं फली बनियास में,
— फूली दीर अज़-ज़ोर में और हमा में जलाई गई व भभकी इदलिब में,
— प्रज्वलित हुई अल-कमीशली में
— क़त्ल हुई दर’आ में ।
— कौन हो तुम ?
— मैं वो हूँ जिसे डर है ।
— कौन इसे तय करेगा ?
— कौन इसे उठाएगा ?
— कौन इसे भड़काएगा?
— मैं वो ...।
— मैं वो हूँ जिसके गुज़रने से दिलों के पेड़ में पत्तियाँ खिल जाती हैं ।
पहाड़ जिसकी भव्यता के आगे झुक जाते हैं ।
जिसके लिए इतिहास सर के बल खड़ा हो जाता है ।
धरती जिसके लिए सूरज के रँग बिखेर देती है ।
मैं वो हूँ ...
जो तानाशाह के मुँह पर चीख़ती है, चिल्लाती है ।
मैं वो हूँ जो वीरों के दिलों-दिमाग के सिवाय नहीं रहती कहीं बन्धकर
और नायकों के ह्रदय के अलावा नहीं जानती कुछ भी ।
मैं वो हूँ जो समझौते नहीं करती, न कभी बिकती है ।
मैं रोटी हूँ ज़िन्दगी की और उसका दूध ।
मेरा नाम है
आज़ादी...।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश