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मेरा प्रतिपल सुन्दर हो / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
मेरा प्रतिपल सुन्दर हो,
प्रतिदिन सुन्दर, सुखकर हो,
यह पल-पल का लघु-जीवन
सुन्दर, सुखकर, शुचितर हो!
हों बूँदें अस्थिर, लघुतर,
सागर में बूँदें सागर,
यह एक बूँद जीवन का
मोती-सा सरस, सुघर हो!
मधुऋतु के कुसुम मनोहर,
कुसुमों की ही मधु प्रियतर,
यह एक मुकुल मानस का
प्रमुदित, मोदित, मधुमय हो!
मेरा प्रतिपल निर्भय हो,
निःसंशय, मंगलमय हो,
यह नव-नव पल का जीवन
प्रतिपल तन्मय, तन्मय हो!
रचनाकाल: जनवरी’ १९३१