भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा प्रियतम उतना ख़ूबसूरत नहीं है / हालीना पोस्वियातोव्स्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: हालीना पोस्वियातोव्स्का  » मेरा प्रियतम उतना ख़ूबसूरत नहीं है

मेरा प्रियतम उतना ख़ूबसूरत नहीं है
सीदी-सादी है उसकी फितरत
अगर उसे पलटने से बरज दूँ
तो मेरे आसमान की घनीभूत दोपहर में
कौन करेगा जामुनी रंगों की चित्रकारी
उसके होंठ हैं दहकते हुए अंगार
और जब वह हँसता है
तो दमकती है दाँतों की नुकीली धवल पंक्ति
मानो दुनियावी चुनौतियों के बरक्स एक माकूल जवाब

मेरी हर रात के आसमान पर
उदित होता है प्रियतम का अर्धचन्द्राकार आनन
वह कमसिन मिज़ाज नहीं है
गलियों की ज्यामितीय रूपाकारों में
नाचते ही रहते हैं उसके नैन
युवतियों में धधकाते हुए अग्नि-ज्वाल
उसके बालों में हाथ डाल
परछाईं को पकड़ लेती हूँ मैं
और एक अधखिले दुबले नुकीले तृण की छाँव
बन जाती है अप्रेल मास के सेब का गठीला गाछ

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह