भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा फ़न मेरी ग़ज़ल तेरा इशारा तो नहीं / मज़हर इमाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा फ़न मेरी ग़जल तेरा इशारा तो नही
हुस्न तेरा इसी पर्दे में ख़ुद-आरा तो नही

दम-ए-ज़ुल्मत भी जो आँखो में है तस्वीर-ए-सहर
हाथ कुछ इस में भी ऐ दोस्त तुम्हारा तो नही

काकुल-ए-वक़्त में सुलझाव नज़र आता है
आप ने ज़ुल्फ-ए-परेशाँ को सँवारा तो नही

मेरे एहसास की वादी में षफ़क़ सी झलकी
मुझ को दोशीजा-ए-फ़ित्रक ने पुकारा तो नही

दामन-ए-हुस्न से कुछ और सुलग उठती है
इष्क़ की आँख़ में शबनम भी शरारा तो नही

मानता हूँ कि किनारे की तमन्ना है मुझे
मैं ने तूफाँ से किया फिर भी किनारा तो नही

ख़ून-ए-गुलशन पस-ए-पर्दो-ए-ऐलान-ए-बहार
देखना गुंचा-ए-नौरस में रारा तो नही

फिर नए सर से पर-ओ-बाल में जुम्बिस सी हुई
नर्गिस-ए-शाहिद-ए-गुल का ये इशारा तो नहीं

थम गई सौत-ए-जरस रूक गए रहबर के क़दम
किसी गुम-कर्दा-ए-मंज़िंल ने पुकारा तो नहीं

मैं ने माना तिरे कूचे में क़दम उठ न सके
ज़ीस्त की दौड़ में लेकिन कभी हारा तो नहीं!