मेरा फूल नहीं खिलता है,
सूने और अकेलेपन में,
सूनेपन के जर्जर वन में,
बंध्या धरती के आँगन में।
मेरा फूल सदा खिलता है,
ऊँचे चौड़े वक्षस्थल पर,
कर्मठ हाथों के करतल पर,
युग के बजते
पल प्रतिपल पर।
रचनाकाल: ३०-०७-१९५३
मेरा फूल नहीं खिलता है,
सूने और अकेलेपन में,
सूनेपन के जर्जर वन में,
बंध्या धरती के आँगन में।
मेरा फूल सदा खिलता है,
ऊँचे चौड़े वक्षस्थल पर,
कर्मठ हाथों के करतल पर,
युग के बजते
पल प्रतिपल पर।
रचनाकाल: ३०-०७-१९५३