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मेरा बाप मुझको ग़लत टोकता है / सूरज राय 'सूरज'
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मेरा बाप मुझको ग़लत टोंकता है।
जवानी में बेटा यही सोचता है॥
कहूँ आइना या कहूँ दोस्त उसको
हाँ! चेहरे की परतें वोही नोचता है॥
मेरे मुल्क़ का नौजवां अपनी ताक़त
कहाँ झोंकनी है कहाँ झोंकता है॥
ये है बादशाहों की महफ़िल जहाँ पे
अदब को ज़रे-बेअदब रोकता है॥
ज़माना उसे भी सिखाता है उड़ना
जो पंखों से अपने फ़लक पोंछता है॥
किसी झूठ से झूठ हारेगा कैसे
कि पानी को पानी कहीं सोखता है॥
मिलेगा भला कैसे भीतर का "सूरज"
अमावस में तू रौशनी खोजता है॥