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मेरा बैरी चाँद तुझे भी सारी रात जगाये / सोनरूपा विशाल

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कोई जोगी तुझको मुझसा प्रेम सिखाये।
मेरा बैरी चाँद तुझे भी सारी रात जगाये।

साँसों में तेरी पुरवाई, लगती हूँ तेरी परछाईं
ख़ुद में ही खोयी रहती हूँ, कुछ कहना है कुछ कहती हूँ
प्रेम हिंडोला झूल रही हूँ, बाक़ी सब कुछ भूल रही हूँ

अपना ये प्रतिबिम्ब तनिक भी तुझमें नज़र न आये।
कोई जोगी तुझको मुझसा प्रेम सिखाये।

मरुथल में छाई बदली से, कान्हा की पावन मुरली से
जैसे सूरज सँग अरुणाई, जैसे मानस सँग चौपाई
हम कबिरा के सबद रमैनी, इक डाली की हम हों टहनी

इन कुंवारी अभिलाषाओं का ब्याह कोई करवाये।
कोई जोगी तुझको मुझसा प्रेम सिखाये।

दो थे अब हम हुए इकाई, तन्हाई लगती मुरझाई
छुट्टी पर हैं मावस रातें, शक्कर सी हैं सारी बातें
महक रहे हैं फुलवारी से, जीत गये हर लाचारी से

क्षिति, जल, पावक, गगन, पवन ये मिलन देख हरषाये।
कोई जोगी तुझको मुझसा प्रेम सिखाये।