भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा भारत सिसक रहा है / महाराज सिंह परिहार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौन निमंत्रण की बातें मत आज करो
अंधकार में मेरा भारत सिसक रहा है

सदियों से जो सतपथ का अनुगामी था
सत्य अहिंसा प्रेम सरलता का स्वामी था
आज हुआ क्यों शोर देश के चप्पे-चप्पे
वनवासी का धैर्य आज क्यों दहक रहा है

होता सपनों का खून यहाँ लज्जा लुटती चौराहे पर
द्रोणाचार्य की कुटिल सीख से खड़ा एकलव्य दोराहे पर
महलों की जलती आँखों से कुटियाएँ जल राख हुईं
और सुरा के साथ देश का यौवन चहक रहा है
 

यहाँ सूर्य की किरणें बंद हैं अलमारी में
यहाँ नित्य मिटतीं हैं कलियाँ बीमारी में
जहाँ वृक्ष भी तन पर अगणित घाव लिए हों
उसी धरा में शूल मस्त हो महक रहा है

नेह निमंत्रण की बातें स्वीकार मुझे
मस्ती-राग-फाग की भी अंगीकार मुझे
पर कैसे झुठला दूँ मैं गीता की वाणी को
कुरुक्षेत्र में आज पार्थ भी धधक रहा है