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मेरा मन ते रपटा पैर फूट गई झारी / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मेरा मन ते रपटा पैर फूट गई झारी
मेरा फट गया दखिनी चीर उलझ गई सारी
मेरी सखी पड़ी बीमार मेरी ड्योढ़ी में
एक बड़ा है गोपाल बैद बनवारी
जंगल की बूटी डाल फिरे झोली में
अरी बुलाओ गोपाल बैद बनवारी
राधा ने घूंघट काढ़ नबज दिखलायी
तेरे ताप नहीं नहीं कोई बिमारी
तू करवाले अपना ब्याह दूर होय बिमारी
राधा हो गई आग यह बात सही नहीं गई
वह बोली झट से सत्य तुम कान्ह सुनाई
तुम्हारे पतले पतले हाथ चांद सा मुखड़ा
करवालो तुम्हीं ब्याह बांध के सेहरा