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मेरा मन नाचा किया सदा / विमल राजस्थानी

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मेरी कृतियों को भले फेंक दो तुम कुड़े के ढेर में
मैं कभी न होऊँगा शामिल इन ‘वादों’ के अंधेर में

सारा जीवन जिस मुफलिस ने-
था साथ दिया निर्धनता का
मर गया अकिंचन ‘नेपाली’
सम्मान लिये बस, जनता का
गीतों का अजहद प्यार मिला, ढह गया अछंद विशाल किला
उसने न कभी बदला कोयल को तीतर और बटेर में

गीतों का मस्त दिवाना हूँ
संगीत-सुधा-मस्ताना हूँ
छंदों की सुधा भरी जिसमें
मैं वह सुन्दर पैमाना हूँ
अतुकांत नहीं मुझको भाये, पश्चिम न कभी भी भरमाये
मेरा मन नाचा किया सदा, पायल की घेर-घुमेर में

कविता की संज्ञा दो न इन्हें
खोखली लकींरे फीकी हैं
रिपु हैं आलाप, छमाछम की
बैरी संगीत-सुधा की हैं
पहले अपनी औकात देख, इससे तो बेहतर लिखो लेख
तुम लेखक हो, कवि हो न, इसे समझोगे देर-सवेर में