भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा मरद / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

र्मैं फसल उगाती हूँ
वह खा जाता है
चुनती हूँ लकड़ियाँ
वह ताप लेता है
मैं तिनका तिनका बनाती हूँ घर
वह गृह स्वामी कहलाता है

उसे चाहिए बिना श्रम किये सब कुछ

मैं सहती जाती हूँ
जानती हूँ
ऐसे समाज में रहती हूँ
जहाँ अकेली स्त्री को
बदचलन साबित करना
सबसे आसान काम है
और यह बात मेरा मरद
अच्छी तरह जानता है.