भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा माज़ी फिर कुरेदा आप ने / नक़्श लायलपुरी
Kavita Kosh से
मेरा माज़ी फिर कुरेदा आप ने।
कर दिया हर ज़ख़्म ताज़ा आप ने।
मेरी आँखों पे ही क्यों ये तोहमतें,
अपने बारे में भी सोचा आप ने।
आप की आँखों में शायद थी नमी,
मेरी आँखों में भी झाँक आप ने।
दिल करेगा रहनुमाई आपकी ?
कर लिया किस पर भरोसा आप ने।
मेरे चेहरे पर लिखा था ग़म मेरा,
देख कर भी कुछ न देखा आप ने।
’नक़्श’ साहब देखिए सच बोल कर,
कर लिया ख़ुद को तमाशा आप ने।