भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा मींजा दिल / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक शोर में अगली सीट पे था
दुनिया का सबसे मीठा गाना
एक हाथ में मींजा दिल था मेरा
एक हाथ में था दिन का खाना।

इस डर से कि बस रुक जाएगी
आवाज़ जहाँ मैं दे दूँगा
मैं सुनता था। कोई छू ले कहीं
मेरी पीठ नहीं- आना जाना लोगों का
हँसना गन्‍धाना- सीने में भरे साबूदाना
दाँतों की चमक सुथरी नाकें- वह रोज़-रोज़
इस रोज़ आज कल भी मुझ पर झुक जाएगी
सूखी लड़की। चेहरा चेहरे चेहरों के मुँह
गाढ़े गोरे पक्‍के खुश चुप। अनजाने बेमन मुस्‍काना

मोटे बुजदिल। घुप। शहरों के।
तब मैं समझा
वह अनिता थी
अनिता? वह सीधी सलोतरी अपनी अनिता थी
रोज़ाना
जब तेज़ हुई बस
मैंने अंग्रेज़ी में कहा
ला कबाना

कोई सुन न सका।
मेरी खुशहाली के दिन में
मुझसे दो आने ले न सका। मैं हो न सका
मैं सो न सका। मैं रो न सका। मैं पों न सका
पों क्‍या माने?