मेरा मोल लगाने वाले / राम लखारा ‘विपुल‘
मिटटी का बर्तन हूं नश्वर, बिकने को आया हूं लेकिन
मेरा मोल लगाने वाले
मेरा अंतिम मूल्य प्रेम है, मेरी इच्छा रतन नहीं है।
मेरे निर्माता ने मुझकों
कुछ ज्यादा ही ताप दिया है
वरदानों के योग्य हो सकूं
इसीलिए यह शाप दिया है
अहोभाग्य मेरा कि तुम्हारे मन को मैं भाया हूं लेकिन
मुझ में विचरण करने वाले
हाँ ! मुझमें उपवन ठहरा है लेकिन इसमें सुमन नहीं है।
उसका हर उपचार सरल है
जिसकों तड़पाया शूलों ने
लेकिन उसको कौन बचाएं
जिसकों पीड़ा दी फूलों ने
देव पीठिका की किस्मत मैं लिखवा तो लाया हूँ लेकिन
मुझ पर पुष्प चढाने वाले
इस आसन पर राधा ही है बांए कोई किशन नहीं है।
याचक बनकर कितना जी ले
लेकिन ऊपर नहीं उगेगा
बीज वही धरती चीरेगा
नीर धूप जो स्वयं चुगेगा
सिद्ध हुआ हूं तपकर सच है देता भी छाया हूं लेकिन
थक कर ऐ सुस्ताने वाले
साथ रहो तो छांव यही है मेरा कोई भवन नहीं है।