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मेरा यक़ीन, हौसला, किरदार देखकर / देवमणि पांडेय

मेरा यक़ीन, हौसला, किरदार देखकर।
मंज़िल क़रीब आ गई रफ़्तार देखकर।।

जब फ़ासले हुए हैं तो रोई है माँ बहुत
बेटों के दिल के दरमियाँ दीवार देखकर।

हर इक ख़बर का जिस्म लहू में है तरबतर
मैं डर गया हूँ आज का अख़बाऱ देखकर।

बरसों के बाद ख़त्म हुआ बेघरी का दर्द
दिल ख़ुश हुआ है दोस्तो घरबार देखकर।

दरिया तो चाहता था कि सबकी बुझा दे प्यास
घबरा गया वो इतने तलबगार देखकर।

वैसे तो नाख़ुदा पे यक़ीं था ज़रा-ज़रा
पर बढ़ गया है हौसला पतवार देखकर।

इस दौर में हर चीज़ बिकाऊ है दोस्तो!
बिकते हैं लोग अब यहाँ बाज़ार देखकर।

वो कौन था जो शाम को रस्ते में मिल गया
वो दे गया है रतजगे एक बार देखकर।

चेहरे से आपके भी झलकने लगा है इश्क़
जी ख़ुश हुआ है आपको बीमार देखकर।