मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी/ विनय प्रजापति 'नज़र'
लेखन वर्ष: २००४/२०११
मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी
तू दुआ में मुझे माँग पाये कभी
टूट चुके हैं मेरी तमन्ना के दोश<ref>कंधे</ref>
तू ख़ुद मुझे संभालने आये कभी
कबसे गया है न आया आज तलक
मेरी चाहत तुझे खींच लाये कभी
यारब<ref>ऐ ख़ुदा</ref> मैं भटक रहा हूँ सहराँ<ref>रेगिस्तान</ref> में
कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी
शामें ग़मगीन<ref>दुख में लिप्त</ref> हैं और उदास हम
क्यों गुफ़्तगू<ref>बातचीत</ref> का मौक़ा आये कभी
मुझसे अब उल्फ़त किये बनती नहीं
मोहब्बत रहे-जुस्तजू<ref>चाहत के रास्ते</ref> पाये कभी
ख़स्ता हाल<ref>बहुत कमज़ोर</ref> है दिल बहुत तेरे लिए
तुझको गर मजमूँ<ref>विषय</ref> समझ आये कभी
तस्वीरें मुझसे बात करती नहीं
तेरा दीवाना सुकून पाये कभी
तेरी कशिश भरी एक नज़र इधर भी हो
दिल पर अपना जादू चलाये कभी
तुम न जानो मेरा प्यार ये अलग बात
पर ख़ुशबू तेरा पयाम लाये कभी
पहली नज़र से जो हसरत है मुझे
काश सुम्बुल उसे समझ पाये कभी