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मेरा शहर / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
शहर में भीड़ है
शहर में शोर है
शहर को ख़ूबसूरत बनाया जा रहा है
सरों पर धूप है
खुरदरी, पथरीली, नुकीली,
बदहवास, हताश
परछाइयाँ.....
तमाम जुर्म, क़त्ल, ख़ुदकशी
सवाल लगा रहे हैं ठहाके
क़ानून उड़ने लगा है वर्कों से
घुल रही हैं कड़वाहट हवाओं में
एक बेआवाज़ ग़ाली जुबाँ पर है
मर चुकी सम्वेदनाओं के साथ जी रहा है शहर
अब बहुत तेज़ भाग रहा है मेरा शहर !