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मेरा शीशे का घर देखा / पंकज कर्ण
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मेरा शीशे का घर देखा
उन हाथों में पत्थर देखा
पानी पानी पानी पानी
ऐसा हमने मंज़र देखा
नाम उसी का लेंगे हरपल
जिसमें अपना तेवर देखा
आँख न होगी गीली उसकी
उसका गीला बिस्तर देखा
प्रेम, सहजता और सचाई
इस शायर का ज़ेवर देखा
पीठ पे खाया घाव जो 'पंकज'
यार के हाथों खंज़र देखा