भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा सपना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
आसमान में उड़ते उड़ते,
भैंस हमारी छत पर आई।
बोली दूध लगा सकते हो,
जितना आज लगा लो भाई।
पता लगा है शुद्ध दूध के,
अब तो धरती पर हैं लाले।
दूध मिलावट वाला पीकर,
होते रोगी भारत वाले।
बड़े-बड़े ड्रम और बाल्टियाँ,
लेकर लोग दौड़ते आये।
किसी तरह भी शुद्ध दूध अब,
उन्हें आज पीने मिल जाए।
दौड़ भाग में उठा पटक में,
गिरी बाल्टी ढर-ढर ढर ढर,
नींद खुल गई मेरी डर से,
आँख मली उठ बैठा सोकर।
भैंस बाल्टी दूध और ड्रम,
पल भर में ही हवा हो गए।
हम तो भाई ओढ़ तान कर,
बिस्तर में फिर घु