मेरा सफ़र. / अली सरदार जाफ़री
हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम<ref>हम हरियाली की तरह बार-बार उगे हैं </ref>
रूमी
फिर इक दिन ऐसा आएगा
आँखों के दिये बुझ जाएँगे
हाथों के कँवल कुम्हलाएँगे
और बर्गे-ज़बाँ से नुत्क़ो-सदा
की हर तितली उड़ जाएगी
इक काले समन्दर की तह में
कलियों की तरह से खिलती हुई
फूलों की तरह से हँसती हुई
सारी शक्लें खो जाएँगी
ख़ूँ की गर्दिश, दिल की धड़कन
सब रागनियाँ सो जाएँगी
और नीली फ़ज़ा की मख़मल पर
हँसती हुई हीरे की ये कनी
ये मेरी जन्नत, मेरी ज़मीं
इसकी सुब्हें, इसकी शामें
बे-जान हुए, बे-समझ हुए
इक मुश्ते-ग़ुबारे-इन्साँ पर
शबनम की तरह रो जाएँगी
हर चीज़ भुला दी जाएगी
यादों के हसीं बुतख़ाने से
हर ची़ज़ उठा दी जाएगी
फिर कोई नहीं ये पूछेगा
सरदार कहाँ है महफ़िल में
लेकिन मैं यहाँ फिर आऊँगा
बच्चों के दहन<ref>मुँह </ref> से बोलूँगा
चिड़ियों की ज़बाँ से गाऊँगा
जब बीज हँसेंगे धरती में
और कोंपलें अपनी उँगली से
मिट्टी की तहों को छेड़ेंगी
मैं पत्ती-पत्ती, कली-कली
अपनी आँखें फिर खोलूँगा
सरसब्ज़ हथेली पर लेकर
शबनम के क़तरे तोलूँगा
मैं रंगे-हिना<ref>मेँहदी का रंग </ref>, आहंगे-ग़ज़ल<ref>ग़ज़ल का संतुलन</ref>
अन्दाज़े-सुख़न<ref> काव्य की शैली </ref> बन जाऊँगा
रुख़्सारे-उरूज़े-नौ<ref>नए खिले हुए चेहरे और यौवन के उभार
</ref> की तरह
हर आँचल से छन जाऊँगा
जोड़ों की हवाएँ दामन में
जब फ़स्ले-ख़िज़ाँ<ref> पतझड़ की फ़स्ल </ref> को लाएँगी
रहरी के जवाँ क़दमों के तले
सूखे हुए पत्तों से मेरे
हँसने की सदाएँ आएँगी
धरती कि सुनहरी सब नदियाँ
आकाश की नीली सब झीलें
हस्ती से मिरी भर जाएँगी
और सारा ज़माना देखेगा
हर आशिक़ है ‘सरदार’ यहाँ
हर माशूक़ा‘सुलताना’ है
मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा<ref>बीत जाने वाला क्षण </ref> हूँ
अय्याम के अफ़्सूँ-खा़ने<ref>जीवन के जादुई घर </ref> में
मैं एक तड़पता क़तरा हूँ
मसरूफ़े-सफ़र<ref> यात्रा में व्यस्त</ref> जो रहता है
माज़ी<ref>अतीत</ref> की सुराही के दिल से
मुस्तक़बिल<ref>भविष्य</ref> के पैमाने में
मैं सोता हूँ और जागता हूँ
और जाग के फिर सो जाता हूँ
सदियों का पुराना खेल हूँ मैं
मैं मर के अमर हो जाता हूँ