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मेरा समर्पण / कर्मानंद आर्य
Kavita Kosh से
एक दिन ख़त्म हो जाएगा मुरझाया बसंत
आसमान रिमझिम बरसायेगा बूंदे
धूप का रंग तेज चटक हो जाएगा
मैं समर्पित करूँगा एक दलित कविता
वो जो अँधेरे के खिलाफ जंग छेड़ेगें
वो जो अन्याय का रोना नहीं रोयेंगे
वो जिन पर मुकदमा नहीं चलेगा
वो जिनका कानून अँधा नंगा नहीं होगा
ऐसी पीढियां जो जानेगी अपना हक़ हकूक
जो शोषण को कैद करेंगी पिंजरे में
जो आरक्षण के खिलाफ आरक्षण की जंग छेड़ेगी
बेटियां गायेंगी सावन का गीत
समझायेंगी शिक्षा का अधिकार
सरेआम सड़कों पर पीटेगी दरिंदो को
बंदरबाट का लोकतंत्रीकरण करेगीं
एक दिन यह सब होगा
हम नहीं होगें
हम समर्पित करेंगे एक दलित कविता
उन दोस्तों के नाम