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मेरा होना / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
मैं साथ हूँ उसके
मुझे होना ही चाहिए
ये तय किया सबने मिलकर
मैंने सहा
जो मुझे नही लगा भला कभी
पर उसका हक था
मैं हासिल थी
रातों की देह पर जमने लगी
सावली परतों को उधेडती
उजालों की नज्म को
अपने अंदर बेसुरा होते सुनती
घर को संभालना था
अपने डगमगाते इरादों से
वो भी किया
उसके लिजलिजे इरादों की बली चढ़ी
व्रत उपवास करती हैं सुहागिने
मैंने भी किया
थोपने को रिवाज बना लिया
जो ना करवाना था
वो भी करवा लिया
पाप पुण्य के चक्र में
इस जनम उस जनम के खौफ ने
मैंने बेच दिया अपना होना
तुमने खरीद लिया...