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मेरी आँखों के अश्क़ों का / ब्रह्मजीत गौतम

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मेरी आँखों के अश्क़ों का बस इतना अफ़साना है
खुशियों में हीरे और ग़म में मोती बन कर आना है

दिल से बोली आँख - हमारी ख्वाहिश कब पूरी होगी
मिलने का अरमान तुझे और मुझको दर्शन पाना है

मेरी सच्ची बातें उनको चुभती हैं नश्तर जैसी
कोई कहता पागल है, कोई कहता दीवाना है

मंदिर मस्जिद गिर्जाघर गुरुद्वारों में क्या ढूँढ रहे
दिल-दिल के उस कारीगर का दिल ही ठौर-ठिकाना है

हिंदी-उर्दू, हिंदू-मुस्लिम साथ रहे हैं, साथ रहें
इनको अलगाने का मतलब दिल के घाव बढ़ाना है

कविता, गीत, ग़ज़ल, दोहे, कुछ भी लिखना आसान नहीं
दिल के दर्दों को चुन कर कोरे काग़ज़ पर लाना है

‘जीत’ सभी को प्यारी लगती, लेकिन मैं यह कहता हूँ
दिल की बाज़ी जो हारा, वह ही जीता मस्ताना है