भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी आँखों में ग़म की निशानी नहीं / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
मेरी आँखों में ग़म की निशानी नहीं
पत्थरों के प्यालों में पानी नहीं
मैं तुझे भूलकर भी नहीं भूलता
प्यार सोना है सोने का पानी नहीं
मेरी अपनी भी मजबूरियां है बहुत
मैं समुन्दर हूँ पीने का पानी नहीं
मेरा चेहरा लक़ीरों में तक़्सीम है
आइनों से मुझे बदगुमानी नहीं
शाम के बाद बच्चों से कैसे मिलूं
अब मिरे पास कोई कहानी नहीं
मौसमों के लिफ़ाफ़े बदलते रहे
कोई तहरीर इतनी पुरानी नहीं
कोई आसेब है इस हसीं शहर पर
शाम रोशन है लेकिन सुहानी नहीं