मेरी आँखों में / अमरेन्द्र
मेरी आँखों मे खिले है फूल लाखों
साल की पहली खिली बरसात हो तुम।
रेत है जीवन-युगों का, कल्प का है
और मेरा मिलन-सुख अति अल्प का है
धार यमुना की बनी बहती रहो तुम
सूख जाऊँगी कभी यह मत कहो तुम
दाह, जिसमें मैं दहा हूँ वह दहे अब
यह तो तुम भी जानती मैं दोपहर का सूर्य
और शीतल चाँदनी की रात हो तुम।
तुम मिले तो, व्योम काँपा, मेह बरसा
रेत का उठता बगूला लगा घर-सा
एक पर्वत नींव से हिलता मिला है
प्यार का बादल कंवल खिलता मिला है
मैं तो अपनी ही उठाए अर्थी को था
आ मिली क्यों बन के फिर बारात हो तुम।
नत हुई-सी दो-दो जोड़ी पलकें अब ये
गीत जो भी बन रहे हैं, कल के अब ये
आज आँखों को मेरी ये हो गया क्या
फूल गंेदे-सी खिली लगती है दुनिया
रख गया है, देवता ज्यों हाथों में मेरे
स्वर्ग की अदभुत नई सौगात हो तुम।