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मेरी आँख रात भर रोई / चेतन दुबे 'अनिल'
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मेरी आँख रात भर रोई।
तेरी इतनी याद सताई,
तारे गिन - गिन रात काट दी।
चिन्तन के घोड़े दौड़ाए,
अन्तर्मन की पीर पाट दी।
विश्वासों ने छला इस कदर-
पल-पल मैंने पलक भिंगोई।
मेरी आँख रात भर रोई।।
तुम बिन सूनी हुई ज़िन्दगी,
एकाकी जीवन काटा है।
सारे सपने बिखर गए हैं,
चहुँदिश पसरा सन्नाटा है।
कुछ भी पता नहीं चलता है-
मेरी नींद कहाँ पर खोई?
मेरी आँख रात भर रोई।।
मुस्कानों के बदले आँसू?
तुमने मन को मार दिया है।
मेरे इन कोमल कंधों पर,
बोझिल मन का भार दिया है।
नहीं दृगों के आँसू थमते-
उर में इतनी पीर पिरोई।
मेरी आँख रात भर रोई।।