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मेरी आत्मा दुःख पारी सै रोब जमावै मतना / मेहर सिंह

वार्ता- अम्बली भठियारी की नौकर थी। अतः उसे उसका कहना मानना ही पड़ता है। अम्बली खाना लेकर जहाज में जाती है तो सौदागर उसका हाथ पकड़ लेता है और जहाज का लंगर खोल दिया जाता है तब रानी अम्बली सौदागर को क्या कहती है-

जहाज रोक दे रे सौदागर कती चालवै मतना
मेरी आत्मा दुःख पारी सै रोब जमावै मतना।टेक

भठियारी नै जुलम कर्या छल की बात करी सै
मेरी गैल्यां बुरी बणगी इतनी मेरै जरी सै
मतना भाजै आगे नै या अम्बली घणी डरी सै
तूं भी क्यूं पाप कमावै या दुःख मैं आप भरी सै
मेरी गुस्से के म्हां डीक जली सै घणी धमकावै मतना।

मेरे सरवन नीर उम्र के याणे मन मैं घणे डरैंगे
मां दीखै ना उन छोरयां ने वे क्युकर सब्र करैंगे
भूख प्यास मैं व्याकुल हो के चौगरदे तै आण घिरैंगे
भठियारी दे काढ़ सराय तै बणखण्ड बीच फिरैंगे
सत के बेड़े पार तरैगे मेरा धर्म मिटावै मतना।

ईज्जत आलै माणस नै सब तरियां डर लागै सै
तेरी बदनीति नै देख कै राणी सौ सौ कोस भागै सै
कहया मान ले सही अम्बली का भाग तरा जागै सै
तेरी नहीं समझ मैं आवै तेरा काल लवै लागै सै
क्यूं मेरी साहमी भागै सै मेरा कष्ट बढ़ावै मतना।

पत्ते ले कै आवैगें जब चौगरदे नै टोहवैंगे
मैं भी उसके पास रही ना दुःख किस कै आगै रोवैंगे
कह मेहर सिंह रटो ओम फल मिलैगा जिसा बोवैंगे
समझणियां माणस की कद्र न्यू मुर्ख खोवैंगे
मेहर सिंह तूं गाणे तै अपणा प्रेम हटावै मतना।