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मेरी आपसे ग़र सगायी न होती / कैलाश झा 'किंकर'

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मेरी आपसे ग़र सगायी न होती
जहाँ से मेरी आशनाई न होती।

गगन के सितारे चिढ़ाते न मुझको
अगर चाँदनी भी परायी न होती।

अगर मान लेते मेरी बात हज़रत
किसी की यहाँ जग-हँसाई न होती।

वफ़ा पर टिकी सारी दुनिया है अब भी
मगर बेवफ़ा में वफ़ाई न होती।

ग़ज़ल, गीत, कविता सुकोमल विधा हैं
जहाँ लेखनी की ढिठाई न होती।

अदब की नदी में उतरने से पहले
समझ लें कि इसमें कमाई न होती।