भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी आहूति लो / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


यह निरन्तर लपटें उगलती
अग्निगर्भा रेत
अब क्या माँगती है-
पेड़-पौधे, जीव
सब कुछ निगल कर भी
अभी तक अतृप्त
बलि-वेदी !

मैं ही बचा हूँ केवल
लो, मैं प्रस्तुत हूँ
मेरी आहूति लो
मुझे भख लो, माँ !

शायद अपने ही बेटे की बलि पा
पसीजो तुम
मुझ में अँकुराओ
फिर से हरी हो आओ !

(1983)