मेरी उंगली को पकड़ ठंडी हवा
ले चली मुझको किधर ठंडी हवा
सर पटकती हर किसी के द्वार पर
कितनी नटखट औ निडर ठंडी हवा
‘मैं’ नहीं रुकती कहीं’ कहने लगी
जब कहा मैंने ‘ठहर’ ठंडी हवा
यह नियामत है खुद की, रख रही
एक सी सब पर नजर, ठंडी हवा
बंद कमरांे की घुटन में बंद हो
यह कहीं जाये न मर, ठंडी हवा
‘तू कहाँ तन्हा है उर्मिल’ कह गई
आज तेरी हमसफर ठंडी हवा।