मेरी उपस्थिति, मेरी अनुपस्थिति / विपिन चौधरी
उस एकमात्र, अछूते दृश्य में
मेरी उपस्थिति
कभी सम्पूर्णता से
दर्ज नहीं हो सकी ।
कभी आधी,
कभी पौनी,
कभी
केवल स्पर्श भर।
तब मैं
कैसे बता सकती हूँ
उस दृश्य का
भौगोलिक,
ऐतिहासिक,
समकालीन,
आधारभूत सत्य।
उस दृश्य के आवर्त में
सिमटी हवाओं के संत्रास से
कैसे परिचित हो सकती हूँ मैं।
जिस दृश्य में मैं कैद हूँ,
वहीं अपने आप को
यत्नपूर्वक समेटे हुए।
कई शाश्वत बेचैनियों से गुजरते हुए,
जीवन की बेहतर मीमांसा करते हुए,
इस बादलों से घिरी साँझ में,
देख रही हूं मैं
कई दृश्यों का घटना बढ़ना।
युग दास्तान
जगह छोड़ो,
परे हटो,
यह स्थान
खाली करो।
यहाँ आयेंगे,
सबसे मशहूर नायक,
धुरंधर खिलाडी,
सिने तारिकायें,
विश्व सुंदरियाँ,
सबसे धनी व्यक्ति,
सबसे सुगठित पहलवान,
यहाँ लगातार
कई दिनों,
कई सालों,
कई शताब्दियों तक
उत्सव चलेंगे,
तेज धुनें बजेंगी,
प्रतियोगितायें होंगी,
हमें इनमें
शामिल होना ही होगा
चाहे अनचाहे।
आने वाली पीढियों को
हम अपनी लाचारी की दास्तान सुनाएंगे।