मेरी एक जगह थी / नीलोत्पल
एक बार मैं पहाड़ चढ़ा 
चढ़ाई के मेरे अपने अनुभव थे
चोटी पर पहँचकर मैं मुस्कराया
मेरा सर आसमान की ओर था
तब से मैं ऊपर की ओर देखता 
ज़मीन मेरे लिए शवों को ढोती 
बनी रही तप्त चट्टान
अब के साल
शहर में पानी की क़िल्लत रही
हर कोई दौड़ा अपनी बाल्टी, घड़े लेकर 
मैंने आसमान की ओर देखा
लेकिन कोई हाथ नहीं था
मैंने नीचे देखा 
कोई चीज़ पैरों की पगथलियों को 
छूने की कोशिश करती रही 
मैंने गेती, फावड़ा उठाया
और भीतर से आती हुई 
आवाज़ का पीछा किया
पानी मेरे पैरों को छूकर
चढ़ रहा था कमर की ओर
तब से मैंने नीचे की ओर देखना शुरू किया
बहुत दूर तक, बहुत दिन तक
मैं घूमता रहा इस अहसास के साथ
नहीं छूटता एक बार भी कि
ज़मीन और आकाश पड़ताल हैं 
हमारे अनुभव के बीच 
हमारे ही रिक्त सच की
तब से मुझे नींद आई गहरी
मैं जुड़ता चला गया सपनों से
लोगों ने मुझे बहुत दुलारा 
उनकी आवाज़ मेरी आवाज़ में 
घुलती चली गई
मेरी एक जगह थी 
आकाश, ज़मीन, और लोगों के बीच
	
	