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मेरी ऐसी गति पर / रामगोपाल 'रुद्र'

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मेरी ऐसी गति पर अब तो लोग तुम्हें हँसते हैं,
देखो, लोग तुम्हें हँसते हैं!

सर्द दर्दवालों की बोली
लगती है छाती में गोली;
उनका कौन उपाय कि जो मधु के पाँखों डँसते हैं?

अलि हँसते सोनामाखी को,
तितली दीप-सती पाँखी को;
परता जहाँ बनी तत्‍परता, सब यों ही नसते हैं!

मुँह कैसे क्या बात बनाए,
घर का भेद न खुलने पाए?
करुणा के बादल जब स्वर की घाटी में फँसते हैं!