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मेरी कविता / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
Kavita Kosh से
मेरी कविता का हर बोल तुम्हारा है।
जब जब हो एकान्त, शांत लिखता हूँ मैं
रहती सम्मुख मूरत एक तुम्हारी ही;
और मुझे चलती-फिरती हर सूरत में
दिखती केवल सूरत एक तुम्हरी ही।
मेरे गीतों की धरती के कण-कण का
यह इतिहास और भूगोल तुम्हारा है॥1॥
बैठ कल्पना के पंखों पर मैं जिसमें
उड़ता रहता, वह आकाश तुम्हारा ही,
स्वर में जो साधना, राग में रंजकता,
वाणी में अविचल विश्वास तुम्हारा ही।
मैं न रहा जब मैं, तुम आये और स्वयं
उठा लेखनी तुमने मेरे गीत लिखे;
तुम ही आँसू की मुसकान बने मेरे
इसीलिए आँसू मोती के भाव बिक।
जो कुछ जिसने जितना आँका है मुझको
मेरा मोल नहीं वह, मोल तुम्हारा है॥3॥
24.12.58