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मेरी किताबों के आख़िरी शब्द / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय

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ये मत सोचो
कि कला के होंठों का
स्वाद कड़वा है —
                  कड़वे खीरे की तरह ...

मेरी कविताओं में
                 मेरे आँसुओं का स्वाद नहीं है,
उनमें तो मेरा दर्द भरा है —
समुद्री नमक की तरह ।

1929