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मेरी खामोशी पे इक हंगामा-ए-तकरीर है / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
मेरी खामोशी पे इक हंगामा-ए-तकरीर है
आपकी महफिल में चुप रहना भी क्या तकसीर <ref>पाप, अपराध</ref> है ?
जिससे सुनना चाहो सुन लो आ के रूदादे जुनॅूँ <ref>पागलपन का हाल</ref>
आज मुँह खोले हुए हर हल्का-ए-जंजीर <ref>जंजीर का धेरा</ref> है
दूसरे का तीर गर होता तो कर जाता खता
जिसने जख्मी कर दिया मुझको वा मेरा तीर है
कब तलक चूमेगा दीवाने ये वहरीरे हसीं
जाके चूम उस हाथ को जिस हाथ की तहरीर है
मेरे साथ चल दिये और मैं ये कहता रह गया
आप चलिए मेरे आने में अभी ताखीर <ref>देर</ref> है
ले सको तो ले लो इक तस्वीर उस तस्वीर की
फिर न हाथ आयेगी ये मिटती हई तस्वीर है
सिलसिले जिन के मिले हैं उनके गेसू से ’नजीर’
उन फकीरों की दुआओं में बड़ी तासीर <ref>असर</ref> है
शब्दार्थ
<references/>