भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी ग़ज़ल बनी / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनियाँ के आँगन में पीड़ा जग की फसल बनी।
मुझ से टकराई आकर तो मेरी ग़ज़ल बनी॥

देखे थे जो सुख सपने
सब दुःसंभाव्य हुए।
नयनों से जो टपके आँसू
मेरे काव्य हुए।

आज विचारों मनभावों में देखो पुनः ठनी।
मुझ आकर टकराई तो मेरी ग़ज़ल बनी॥

जब जब घिरे सघन घन
मानस में बरसात हुई।
छितराए जब कुंतल काले
मावस रात हुई।

दिप दिप कर चलती है उर में नन्ही आस कनी।
मुझ से आकर टकराई तो मेरी ग़ज़ल बनी॥