भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी चर्चा / अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब भी रिक्त है
फेसबुक पर
मेरे स्वयं के विवरण का
एक बड़ा अंश,
कई बंधुओं ने
न जाने कितनी बार
किया प्रश्न-
क्यों छुपाते हो खुद को
खुद के लोगों से?
कई बार तो
पृष्ठ के खुलते ही
फेसबुक स्वयं ही
स्मरण कराता है
अपने परिचय की
परिपूर्णता की
आवश्यकता ।
पर मैं चाहता हूँ
जब मैं ना रहूँ
चर्चा न हो
मेरे पठन - पाठन और
प्राप्त शैक्षणिक योग्यताओं की,
मेरे कार्यस्थल और
उसके बहुराष्ट्रीय दफ्तरों की,
मेरे पद और
उसकी औसत गरिमा की,
कोई ना करे फैसला
मेरी छोटी – बड़ी उपलब्धियों से ।
मुझ अदने आदमी की
चर्चा यदि हो तो
मेरे आचार-विचार की,
मेरी भावना और जज़्बात की,
मेरी कविताओं और उनके शब्दों की
अगर चर्चा होनी ही हो
तो हो मेरी आदमीयत की ।