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मेरी चिन्ता न करो मैं तो सँभल जाऊँगा / ज्ञान प्रकाश विवेक

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मेरी चिन्ता न करो मैं तो सँभल जाऊँगा
गीली मिट्टी हूँ कि हर रूप में ढल जाऊँगा

मैम कोई चाँद नहीं हूँ कि अमर हो जाऊँ
मैं तो जुगनू हूँ सुबह धूप में जल जाऊँगा

इसलिए ले नहीं जाता मुझे मेले में पिता
देख लूँगा मैं खिलौने तो मचल जाऊँगा

बर्फ़ की सिल हूँ मुझे धूप में रखते क्यूँ हो
मुझको जलना है तो मैं छाँव में गल जाऊँगा

काँच का फ़र्श बना के तू मुझे घर न बुला
मैं अगर इस पे चलूँगा तो फिसल जाऊँगा

छावनी डाल के रुकते हैं शहर में लश्कर
मैं तो जोगी हूँ, इसी शाम निकल जाऊँगा

मुझको शोहरत के हसीं ख़्वाब दिखाने वाले!
मैं कोई गेंद नहीं हूँ कि उछल जाऊँगा.