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मेरी ज़बान में जो इतनी तल्ख़ियाँ होंगी / राम गोपाल भारतीय
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मेरी ज़बान में जो इतनी तल्खियाँ होंगी
ये आज की नहीं सदियों की ग़लतियाँ होंगी
अगर ये मुल्क़ कभी फिर से टूट कर बिखरा
तो ज़िम्मेदार हमारी ये जातियाँ होंगी
फ़ज़ा में घोल दिया ज़हर तो सोचो कैसे
हवा में तितलियाँ पानी में मछलियाँ होंगी
हमारी आँख का जल भाप बन गया शायद
बरस रही जो, उस जल की बदलियाँ होंगी
ख़ुदा का शुक्रिया करना जनम पे इनके भी
सहारा तेरे बुढ़ापे का बेटियाँ होंगी