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मेरी जान! साँस लेने को जीना नहीं कहते / तारा सिंह
Kavita Kosh से
मेरी जान! साँस लेने को जीना नहीं कहते
जो मिलकर दे दगा, उसे बेगाना नहीं कहते
उसने आँखों का जाम नजरों से पीया नहीं
उसे पिलाया गया है, इसे पीना नहीं कहते
फ़ुरकत की बेताबी में कुछ से कुछ
कह जाने को, होश गंवाना नहीं कहते
अपनी पलकों पर बिठाकर जो करे हलाक
वह आशना है, उसे ना-आशना नहीं कहते
अश्क मिजगां को छोड़कर खाक में मिलते हैं
इसे अहले-अदम से मिलना नहीं कहते