भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी जान, साँस लेने को जीना नहीं कहते / तारा सिंह
Kavita Kosh से
मेरी जान! साँस लेने को जीना नहीं कहते
जो मिलकर दे दगा, उसे बेगाना नहीं कहते
उसने आँखों का जाम नजरों से पीया नहीं
उसे पिलाया गया है,इसे पीना नहीं कहते
फ़ुरकत1 की बेताबी में कुछ से कुछ
कह जाने को, होश गंवाना नहीं कहते
अपनी पलकों पर बिठाकर जो करे हलाक2
वह आशना3 है, उसे ना-आशना नहीं कहते
अश्क मिजगां4को छोड़कर खाक में मिलते हैं
इसे अहले-अदम5 से मिलना नहीं कहते
1. जुदाई का दुख 2. मारना 3. परिचित 4.आँखों के पलक 5.परलोक सिधार गए लोग